यूँ ही उम्मीद दिलाते है ज़माने वाले
कब पलटते है भला छोड़ के जाने वाले,
तू कभी देख झुलसते हुए सहरा में दरख़्त
कैसे जलते है वफ़ाओ को निभाने वाले,
इनसे आती है तेरे लम्स की ख़ुशबू अब भी
ख़त निकाले हुए बैठा हूँ सब पुराने वाले,
आ कभी देख ज़रा उनकी शबों में आ कर
कितना रोते है ज़माने को हँसाने वाले,
कुछ तो आँखों की ज़बानी भी कह जाते है
मुँह से होते नहीं सब राज़ बताने वाले..!!