दिल की इस दौर में क़ीमत नहीं होती शायद
सब की क़िस्मत में मुहब्बत नहीं होती शायद,
फ़ैसला आखिरी लम्हे में बदल सकता है
हारने वालों में हिम्मत नहीं होती शायद,
कौन जज़्बात को बाज़ार में ले आया है
ऐसी चीजों की तिज़ारत नहीं होती शायद,
भागते दौड़ते इस शहर में कुछ लोगो को
ख़ुद से मिलने की भी फ़ुर्सत नहीं होती शायद,
जी हुजूरी मेरी फ़ितरत में जो शामिल होती
मुझ से लोगो को शिकायत नहीं होती शायद,
मैं भी औरों की तरह अपने लिए जीता अगर
ग़म की यूँ मुझ पे इनायत नहीं होती शायद..!!