कोई सिपाही नहीं बच सका निशानों से…

कोई सिपाही नहीं बच सका निशानों से
गली में तीर बरसते रहे मकानों से,

ये बर्बादी अचानक से थोड़ी आई है
कलाम करना पड़ा मुझको बदज़ुबानो से,

हमारे राह में दीवार बन गए वो लोग
जिन्हें सुनाई भी नहीं दे रहा था कानो से,

तमाशे यूँ ही नहीं कामयाब हो जाते
मकीं खींच के लाये गए मकानों,

बहुत से शेर सुनाएँ है गुनगुना के मगर
ये जंग जीती नहीं जा रही अब तरानों से..!!

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