कहे दुनियाँ उसे ऐसे ही बेकार न आये
क़िस्मत का मेरी बन के ख़रीदार न आये,
इस बार मुलाक़ात मुहब्बत तो न होगी
इस बार मेरा हाशिया बरदार न आये,
दुनियाँ में तो मरते थे मेरे हुस्न पे लेकिन
अब हश्र में क्यूँ मेरे तलबगार न आये ?
सब लोग हो सर गश्ता मेरे सामने एक दिन
पीछे से जो दुश्मन का कोई वार न आये,
लगता है यहाँ फैला हवाओं का है जादू
दौरान ए सफ़र राह में अश्ज़ार न आये,
कुछ रोज़ में हो जाएगा बंद आँख का चश्मा
पीने मेरी आँखों से जो मयख़्वार न आये,
वैसे तो ख्यालो में तेरा राज है हमदम
गज़लों में तेरे नाम के अश’आर न आये..!!