कोई नई चोट फिर से खाओ ! उदास लोगो…

कोई नई चोट फिर से खाओ ! उदास लोगो
कहा था किसने कि मुस्कुराओ ! उदास लोगो,

गुज़र रही है गली से फिर मातमी हवाएँ
किवाड़ खोलो दिए बुझाओ ! उदास लोगो,

जो रात मक़्तल में बाल खोले उतर रही थी
वो रात कैसी रही सुनाओ ! उदास लोगो ?

कहाँ तलक बाम ओ दर चराग़ां किए रखोगे
बिछड़ने वालों को भूल जाओ ! उदास लोगो,

उजाड़ जंगल डरी फ़ज़ा हाँफती हवाएँ
यहीं कहीं बस्तियाँ बसाओ ! उदास लोगो,

ये किस ने सहमी हुई फ़ज़ा में हमें पुकारा
ये किसने आवाज़ दी के आओ ! उदास लोगो,

ये जाँ गँवाने की रुत यूँ ही रायगाँ न जाए
सर ए सिनां कोई सर सजाओ ! उदास लोगो,

उसी की बातों से ही तबियत संभल सकेगी
कहीं से ‘मोहसिन’ को ढूँढ लाओ ! उदास लोगो..!!

~मोहसिन नक़वी’

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