इब्तिदा ए इश्क़ में मेरा
यूँ हुआ दिल ख़राब आधा,
कि जैसे सिख पर चढ़ते ही
जल गया हो कबाब आधा,
लगता है मेरे महबूब की है
शायद एक आँख गायब,
क्योकि वो जब भी उलटता है
उलटता है रुख से नक़ाब आधा..!!
इब्तिदा ए इश्क़ में मेरा
यूँ हुआ दिल ख़राब आधा,
कि जैसे सिख पर चढ़ते ही
जल गया हो कबाब आधा,
लगता है मेरे महबूब की है
शायद एक आँख गायब,
क्योकि वो जब भी उलटता है
उलटता है रुख से नक़ाब आधा..!!