जो चल सको तो कोई ऐसी चाल चल जाना
मुझे गुमाँ भी ना हो और तुम बदल जाना,
ये शोलगी हो बदन की तो क्या किया जाये
सो लाजमी है तेरे पैरहन का जल जाना,
तुम्हीं करो कोई दरमाँ, ये वक्त आ पहुँचा
कि अब तो चारागरों का भी हाथ मल जाना,
अभी अभी जो जुदाई की शाम आई थी
हमें अजीब लगा ज़िन्दगी का ढल जाना,
सजी सजाई हुई मौत ज़िन्दगी तो नहीं
मुअर्रिखों ने मकाबिर को भी महल जाना,
ये क्या कि तू भी इसी साअते जवाल में है
कि जिस तरह है सभी सूरजों को ढल जाना,
हर एक इश्क के बाद और उसके इश्क के बाद
फ़राज़ इतना आसाँ भी ना था संभल जाना..!!
~अहमद फ़राज़