किताबों में मेरे फ़साने ढूँढते हैं…

किताबों में मेरे फ़साने ढूँढते हैं
नादां हैं गुज़रे ज़माने ढूँढते हैं,

जब वो थे तलाश ए ज़िंदगी भी थी
अब तो मौत के ठिकाने ढूँढते हैं,

कल ख़ुद ही अपनी महफ़िल से निकाला था
आज हुए से दीवाने ढूँढते हैं,

मुसाफ़िर बेख़बर हैं तेरी आँखों से
तेरे शहर में मैख़ाने ढूँढते हैं,

तुझे क्या पता ऐ सितम ढाने वाले
हम तो रोने के बहाने ढूँढते हैं,

उनकी आँखों को यूँ ना देखो ’फ़राज़’
नए तीर हैं, निशाने ढूँढते हैं..!!

~अहमद फ़राज़

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