जिस वक़्त वालिदैन ने जनाज़े उठाये होंगे
उस वक़्त कितने खून के आँसू बहाए होंगे,
मुंसफ सज़ा कहाँ ज़ालिमों को सुनाएगा
जिसने गरीब ए शहर के सपने चुराए होंगे,
दिखा अजीब शहर के हाकिम का मशगला
इन्सान क़त्ल कर के कबूतर उड़ाए होंगे,
ज़ालिम हवाओं से अब ये ज़रूरी है पूछना
क्यूँ राह के दीये सभी उसने बुझाए होंगे ?
लगनी है एक दिन उसको माँ की बद्दुआ
भूखी रह कर बच्चे भी जिसने भूखे सुलाए होंगे,
देते हैं वो जो मज़लूमों को पल पल अज़ीयतें
कितनी ही मुश्किलों से वो लम्हें भूलाये होंगे,
ऐ लोगो कहों ज़ालिमों से कभी देखे उतार कर
आँखों पे जो नफ़रतों के चश्में लगाए होंगे..!!