बताओ दिल की बाज़ी में भला क्या बात गहरी थी ?
कहा, यूँ तो सभी कुछ ठीक था पर मात गहरी थी,
सुनो, बारिश कभी ख़ुद से कोई बढ़ के देखा है ?
जवाब आया, इन आँखों की मगर बरसात गहरी थी,
सुनो, पीतम ने हौले से कहा क्या कुछ बताओगे ?
जवाब आया, कहा तो था मगर वो बात गहरी थी,
दिया दिल का समन्दर उसने तुमने क्या किया उसका ?
हमें बस डूब जाना था कि वो सौगात गहरी थी,
वफ़ा का दश्त कैसा था ? बताओ तुम पे क्या बीती ?
भटक जाना ही था हमको, वहां पर रात गहरी थी,
तुम उसके ज़िक्र पर क्यूँ डूब जाते हो ख्यालों में ?
रफ़ाक़त और अदालत अपनी उसके साथ गहरी थी,
नज़र आया तुम्हें उस अजनबी में क्या क्या बताओ ?
सुनो, क़ातिल निगाहों की वो ज़ालिम घात गहरी थी..!!