कौन कहता है शरारत से तुम्हे देखते है
जान ए मन हम तो मुहब्बत से तुम्हे देखते है,
तुमको मालूम नहीं तुम हो मुक़दस कितने
देखते है तो हम अक़ीदत से तुम्हे देखते है,
देख के तुमको किसी और की याद आती है
हम किसी और ही निस्बत से तुम्हे देखते है,
साथ गैरो के नज़र आओ तो जी कुढ़ता है
क्या कहे कैसी अज़ीयत से हम तुम्हे देखते है,
झोकनी पड़ती है ये जान अज़ाबो में हमें
कौन कहता है हम सहूलत से तुम्हे देखते है,
जाने क्या लिखते हो क्या सोचते रहते हो वसी
रात को जब भी कभी छत से तुम्हे देखते है..!!