क़मर की वो ख़ुर्शीद तस्वीर है
गले में सितारों की ज़ंजीर है,
कहाँ पा ए जानाँ कहाँ मेरा सर
ये तालेअ् ये क़िस्मत ये तक़दीर है,
ख़फ़ा आप से आप होते हो क्यूँ ?
बता दो जो कुछ मेरी तक़्सीर है,
न खोलो ख़त उस का धड़कता है दिल
ख़ुदा जाने क्या इस में तहरीर है,
नुमायाँ है क़ौस ए क़ुज़ह अब्र में
मिसी पर लिखौटे की तहरीर है,
मुनासिब है कुछ खा के मर जाओ ‘बर्क़’
यही दर्द ए फ़ुर्क़त की तदबीर है..!!
~मिर्ज़ा रज़ा बर्क़