नक़ाब चेहरों पे सजाये हुए आ जाते है
अपनी करतूत छुपाये हुए आ जाते है,
घर निकले कोई औरत तो हवस के पैकर
हर तरफ घात लगाये हुए आ जाते है,
जब भी यारों की इनायत का चर्चा हो तो
हम ज़ख्म सीनों पे सजाये हुए आ जाते है,
काम करने पे इन्हे मौत नज़र आती है क्या ?
वो लोग जो कशकोल उठाये हुए आ जाते है,
मेरी महफिल मे मेरे नारे लगाते हुए लोग
नफ़रतें दिल मे छुपाये हुए आ जाते है,
मैं ज़माने का सताया हूँ मेरे दर पे यूँ नहीं
सब ज़माने के सताये हुए आ जाते है,
रोज़ मेरे ही मरकद पे मेरे ही क़ातिल
शक्ल मासूम बनाये हुए आ जाते है॥