दूर होते हुए क़दमों की ख़बर जाती है
ख़ुश्क पत्ते को लिए गर्द ए सफ़र जाती है,
पास आते हुए लम्हात पिघल जाते हैं
अब तो हर चीज़ दबे पाँव गुज़र जाती है,
रात आ जाए तो फिर तुझ को पुकारूँ या रब
मेरी आवाज़ उजाले में बिखर जाती है,
दोस्तो तुम से गुज़ारिश है यहाँ मत आओ
इस बड़े शहर में तन्हाई भी मर जाती है..!!
~जावेद नासिर