झगड़ना काहे का ? मेरे भाई पड़ी रहेगी
ये बाप दादा की सब कमाई पड़ी रहेगी,
अंधेरे कमरों में रक्स करती रहेंगी वहशतें
और एक कोने में पारसाई पड़ी रहेगी,
हवा की मन्नत करो कि घर के दीये बुझे तो
उदास हो कर दीया सलाई पड़ी रहेगी,
हमारी नज़रों से और ओझल अगर हुए तुम
ज़माने भर की ये रोशनाई पड़ी रहेगी,
तुम्हारे जाने के बाद कैसी मुहल्लेदारी ?
यक़ीन कर लो बनी बनाई पड़ी रहेगी,
तुम्हारे हाथों का लम्स काफ़ी है, लौट आओ
मैं ठीक हो जाऊँगा, दवाई पड़ी रहेगी,
बुज़ुर्ग रुख़सत हुए हैं लेकिन बरामदे में
पुराने वक़्तों की चारपाई पड़ी रहेगी…!!