राहें धुआँ धुआँ हैं सफ़र गर्द गर्द है

राहें धुआँ धुआँ हैं सफ़र गर्द गर्द है
ये मंज़िल ए मुराद तो बस दर्द दर्द है,

अपने पड़ोसियों को भी पहचानता नहीं
महसूर अपने ख़ोल में अब फ़र्द फ़र्द है,

इस मौसम ए बहार में ऐ बाग़बाँ बता
चेहरा हर एक फूल का क्यूँ ज़र्द ज़र्द है ?

लफ़्फ़ाज़ियों का गर्म है बाज़ार किस क़दर
दस्त ए अमल हमारा मगर सर्द सर्द है,

कैसा तज़ाद शाख़ ए तमन्ना में है असद
ख़ुद ये हरी हरी है समर ज़र्द ज़र्द है..!!

~असद रज़ा

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