आज के माहौल में इंसानियत बदनाम है…
आज के माहौल में इंसानियत बदनाम है ये इनाद ए बाहमी का ही फ़क़त अंजाम …
आज के माहौल में इंसानियत बदनाम है ये इनाद ए बाहमी का ही फ़क़त अंजाम …
तुख़्म ए नफ़रत बो रहा है आदमी आदमियत खो रहा है आदमी, ज़िंदगी का नाम …
अगर सफ़र में मेरे साथ मेरा यार चले तवाफ़ करता हुआ मौसम ए बहार चले, …
बूढ़ा टपरा, टूटा छप्पर और उस पर बरसातें सच उसने कैसे काटी होंगी, लंबी लंबी …
समझ रहे थे कि अपनी सुधर गई दुनियाँ हमें तो मुफ़्त में बदनाम कर गई …
मैं दहशतगर्द था मरने पे बेटा बोल सकता है हुकूमत के इशारे पे तो मुर्दा …
ये संसद है यहाँ भगवान का भी बस नहीं चलता जहाँ पीतल ही पीतल हो …
अजब दुनिया है नाशायर यहाँ पर सर उठाते हैं जो शायर हैं वो महफ़िल में …
हर एक आवाज़ अब उर्दू को फ़रियादी बताती है यह पगली फिर भी अब तक …
तू ग़ज़ल बन के उतर बात मुकम्मल हो जाए मुंतज़िर दिल की मुनाजात मुकम्मल हो …