अगर सफ़र में मेरे साथ मेरा यार चले…

अगर सफ़र में मेरे साथ मेरा यार चले
तवाफ़ करता हुआ मौसम ए बहार चले,

लगा के वक़्त को ठोकर जो ख़ाकसार चले
यक़ीं के क़ाफ़िले हमराह बेशुमार चले,

नवाज़ना है तो फिर इस तरह नवाज़ मुझे
कि मेरे बाद मेरा ज़िक्र यहाँ बार बार चले,

ये जिस्म क्या है, कोई पैरहन उधार का है
यहीं संभाल के पहना और यहीं उतार चले,

ये जुगनुओं से भरा आसमां जहाँ तक है
वहाँ तलक तेरी नज़रों का इक़्तिदार चले,

यही तो एक तमन्ना है इस मुसाफ़िर की
जो तुम नहीं तो सफ़र में तुम्हारा प्यार चले..!!

~अलोक श्रीवास्तव

Leave a Reply

%d bloggers like this: