ज़माना है कि गुज़रा जा रहा है
ये दरिया है कि बहता जा रहा है,
वो उट्ठे दर्द उठा हश्र उठा
मगर दिल है कि बैठा जा रहा है,
लगी थी उन के क़दमों से क़यामत
मैं समझा साथ साया जा रहा है,
ज़माने पर हँसे कोई कि रोए
जो होना है वो होता जा रहा है,
मेरे दाग़ ए जिगर को फूल कह कर
मुझे काँटों में खींचा जा रहा है,
बहार आई कि दिन होली के आए
गुलों में रंग खेला जा रहा है,
रवाँ है उम्र और इंसान ग़ाफ़िल
मुसाफ़िर है कि सोता जा रहा है,
सर ए मय्यत है ये इबरत का नौहा
मोहब्बत का जनाज़ा जा रहा है,
जलील अब दिल को अपना दिल न समझो
कोई कर के इशारा जा रहा है..!!
~जलील मानिकपूरी
दिल गया दिल लगी नहीं जाती
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