कभी ऐसा भी होता है ?
कि जिसको हमसफ़र जाने
कि जो शरीक़ ए दर्द हो
वही हमसे बिछड़ जाए,
कभी ऐसा भी होता है ?
कि आँखे जिन ख़्वाबो को
हकीक़त जान बैठी हो
वो सब सपने बिखर जाएँ,
कभी ऐसा भी होता है ?
कि जिसके साथ पहरों साअतें
हमने गुज़ारी हो
उसी से राब्ता टूट जाए,
कभी ऐसा भी होता है ?
खिज़ाओ के दीवाने को
बहारो में बहारो से मुहब्बत
होने ही वाली हो
और यकायक मौसम बदल जाए,
कभी ऐसा भी होता है ?
कि जिसके नाम के आगे हमारा नाम आया हो
जिसे महरम बनाया हो
उसी को अपने हाथों से
किसी को सौंप कर आए,
कभी ऐसा भी होता है ?
फ़क़त जो खाँस उठने पर बहुत घबड़ा सा जाता हो
हमारे खून उगलने पर भी
वो लापरवाह हो जाए…!!