ज़हर के घूँट भी हँस हँस के पीये जाते है
हम बहरहाल सलीक़े से जीये जाते है,
एक दिन हम भी बहुत याद किए जाएँगे
चंद अफ़साने ज़माने को दिए जाते है,
हमको दुनियाँ से मुहब्बत भी बहुत है लेकिन
लाख़ इल्ज़ाम भी दुनियाँ को दिए जाते है,
बज़्म ए अग़्यार सही, अज़ रह ए तनकीद सही
शुक्र है हम भी कहीं याद किए जाते है,
हम किए जाते है तक़लीद ए रवायात ए जुनूँ
और ख़ुद चाक़ ए गिरेबाँ भी सिए जाते है,
गम ने बख्शी है ये मोहतात मिजाज़ी हमको
ज़ख्म भी खाते है आँसू भी पिए जाते है,
हाल का ठीक है ‘इक़बाल’ न फ़र्दा का यकीं
जाने क्या बात है हम फिर भी जिए जाते हैं..!!
~इक़बाल अज़ीम