हम तरसते ही तरसते ही तरसते ही रहे
वो फ़लाने से फ़लाने से फ़लाने से मिले,
ख़ुद से मिल जाते तो चाहत का भरम रह जाता
क्या मिले आप जो लोगो के मिलाने से मिले,
माँ की आग़ोश में कल मौत की आग़ोश में आज
हम को दुनियाँ में ये दो वक़्त सुहाने से मिले,
कभी लिखवाने गए ख़त कभी पढ़वाने गए
हम हसीनों से इसी हिले ओ बहाने से मिले,
एक नया ज़ख्म मिला एक नई उम्र मिली
जब किसी शहर में कुछ यार पुराने से मिले,
एक हम ही नहीं फिरते है लिए क़िस्सा ए गम
उनके ख़ामोश लबों पर भी फ़साने से मिले,
कैसे माने कि उन्हें भूल गया है तू ऐ कैफ़
उनके ख़त आज हमें तेरे सिरहाने से मिले..!!
~कैफ़ भोपाली