शाम से आज साँस भारी है
बे क़रारी सी बे क़रारी है,
आपके बाद हर घड़ी हमने
आपके साथ ही गुज़ारी है,
रात को दे दो चाँदनी की रिदा
दिन की चादर अभी उतारी है,
शाख पर कोई कहकहा तो खिले
कैसी चुप सी चमन पे तारी है,
कल का हर वाकया तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है..!!
~गुलज़ार