ये चुभन अकेलेपन की, ये लगन उदास शब से…

ये चुभन अकेलेपन की, ये लगन उदास शब से
मैं हवा से लड़ रहा हूँ, तुझे क्या बताऊँ कब से ?

ये सहर की साज़िशे थी, कि इन्तेकाम ए शब था
मुझे ज़िन्दगी का सूरज, ना बचा सका गज़ब से,

तेरे नाम से शिफ़ा हो, कोई ज़ख्म वो अता कर
मेरे नामाबर मिले तो, उसे कहना ये अदब से,

वो जवां रुतों की शामे कहाँ खो गई है मोहसिन
मैं तो बुझ के रह गया हूँ, वो बिछड़ गया है जब से..!!

~मोहसिन नक़वी

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