तुम्हारी सोच, तुम्हारे गुमाँ से बाहर हम
खड़े हुए है सफ ए दोस्तां से बाहर हम,
हमें ही रास न आया मुहब्बतों का चलन
सो कर दिए गए दिल की दुकां से बाहर हम,
हमारी अपनी कहानी में हम कहीं भी न थे
और अब पड़े है तेरी दास्ताँ से बाहर हम,
हमारा इश्क़ हमें उस मुक़ाम पर लाया
पहुँच गए है कही दो जहाँ से बाहर हम,
हमारा रिश्ता है मिट्टी से इस कदर गहरा
कि जा ही सकते नहीं खाक़दां से बाहर हम,
हमारी सोच पर पहरे बिठाने वाले सुन
तुझे ही कर देंगे हर इम्तिहाँ से बाहर हम,
बना सके न ताअल्लुक़ जो जाने वालो से
शुमार होने लगे रिफ़तगाँ से बाहर हम,
सितारा साज़ी में इतने हुए मगन हम
निकल गए है हद ए कहकशाँ से बाहर हम..!!