तुम जैसे तो लाखो ही थे, है और भी आएँगे
मगर हम जैसे तुम्हे बहुत कम ही मिल पाएँगे,
बेचते है ज़मीर ओ क़लम जो और लोग है
हमारे पैगाम ए हक़ तुम्हे सितारों पे नज़र आएँगे,
तुम्हे मुबारक़ हो बद्दुआओ का दरियाँ साहब
हम तो मज़लूमो की एक आह से ही मर जाएँगे,
हम तुम्हे फूलो की वफ़ाओ में नज़र आएँगे
जब भी ढूँढोगे अमन की फिज़ाओ में नज़र आएँगे,
जब कभी याद आये तो बस हाथ उठा लेना तुम
हम हर एक हक़ परस्त की दुआओं में नज़र आएँगे,
मत ढूँढना हमें तुम कभी नफरतो की तपीश में
हम तुम्हे सिर्फ़ मुहब्बतों की छाँव में नज़र आएँगे..!!
~नवाब ए हिन्द