अश्क आँखों में छुपाते हुए थक जाता हूँ
बोझ पानी का उठाते हुए थक जाता हूँ,
पाँव रखते है जो मुझ पर उन्हें एहसास नहीं
मैं निशानात मिटाते हुए थक जाता हूँ,
बर्फ़ ऐसी कि पिघलती नहीं पानी बन कर
प्यास ऐसी कि बुझाते हुए थक जाता हूँ..!!
अश्क आँखों में छुपाते हुए थक जाता हूँ
बोझ पानी का उठाते हुए थक जाता हूँ,
पाँव रखते है जो मुझ पर उन्हें एहसास नहीं
मैं निशानात मिटाते हुए थक जाता हूँ,
बर्फ़ ऐसी कि पिघलती नहीं पानी बन कर
प्यास ऐसी कि बुझाते हुए थक जाता हूँ..!!