तुमको वहशत तो सीखा दी है गुज़ारे लायक
और कोई हुक्म ? कोई काम हमारे लायक ?
माज़रत ! मैं तो किसी और के मसरफ़ में हूँ
ढूँढ देता हूँ मगर कोई और तुम्हारे लायक,
एक दो ज़ख्मो की गहराई, और आँखों के खँडहर
और कुछ ख़ास नहीं मुझ में, नज़ारे लायक,
घोसला, छावं, हरा रंग, समर कुछ भी नही
देख ! मुझ जैसे शज़र होते है बस आरे लायक,
दो वजूहात पे इस दिल की आसामी न मिली
एक ! दरख्वास्त गुज़ार इतने, दो ! सारे लायक,
इस इलाक़े में उजालों की जगह कोई नहीं
सिर्फ़ परचम है यहाँ चाँद सितारे लायक,
मुझ निकम्मे को चुना उसने तरस खा कर
देखते रह गए हसरत से सभी बेचारे लायक..!!