एक अनकही, ख़ामोश मुहब्बत पे बात कर…

एक अनकही, ख़ामोश मुहब्बत पे बात कर
जो कर सके तो बाप की चाहत पे बात कर,

रखता है जिस ख़ुलूस से बच्चो के सर पे हाथ
उस बेपनाह प्यार पे, शफ़क़त पे बात कर,

माँ की फ़ज़ीलत से तो वाकिफ़ है सब यहाँ
दिल है कि आज बाप की अजमत पे बात कर,

औलाद को जो पालता है आन बान से
उस बा वक़ार शख्स की उल्फत पे बात कर,

करता नहीं है कोई यहाँ जिसका तज़किरा
तू रब की उस अज़ीम इनायत पे बात कर,

बेटी की रुखसती पे जो होता है अश्क बार
उस आब दीदा बाप की राहत पे बात कर,

औलाद की ख़ुशी में जो मिलती है उसको भी
वालिद की उस कमाल ए मुसर्रत पे बात कर,

इस बज़्म में सभी ने की है माँ पे गुफ़्तगू
ऐ दिल चल उठ तू बाप की रहमत पे बात कर..!!

 

 

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