पूछो अगर तो करते है इन्कार सब के सब…

पूछो अगर तो करते है इन्कार सब के सब
सच ये कि है हयात से बेज़ार सब के सब,

अपनी ख़बर किसी को नहीं फिर भी जाने क्यूँ ?
पढ़ते है रोज़ शहर में अख़बार सब के सब,

था एक मैं जो शर्त ए वफ़ा तोड़ता रहा
हालांकि बा वफ़ा थे मेरे यार सब के सब,

सोचो तो नफरतों का ज़खीरा है एक दिल
करते है यूँ तो प्यार का इज़हार सब के सब,

ज़िंदान कोई क़रीब नहीं और न रक्स गाह
सुनते है एक अज़ीब सी झंकार सब के सब,

मैदान ए जंग आने से पहले पलट गए
निकले थे ले के हाथ में तलवार सब के सब,

ज़हनो में खौलना था जो लावा वो जम गया
मफलूज़ हो के रह गए फ़नकार सब के सब..!!

Leave a Reply

Receive the latest Update in your inbox