मुहब्बत करने वालों में ये झगड़ा डाल देती है…

मुहब्बत करने वालों में ये झगड़ा डाल देती है
सियासत दोस्ती की जड़ में मट्ठा डाल देती है,

तवायफ़ की तरह अपने ग़लत कामों के चेहरे पर
हुकूमत मंदिर ओ मस्जिद का पर्दा डाल देती है,

हुकूमत मुँह भराई के हुनर से ख़ूब वाक़िफ़ है
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकड़ा डाल देती है,

कहाँ की हिजरतें कैसा सफ़र कैसा जुदा होना
किसी की चाह पैरों में दुपट्टा डाल देती है,

ये चिड़िया भी मेरी बेटी से कितनी मिलती जुलती है
कहीं भी शाख़े गुल देखे तो झूला डाल देती है,

भटकती है हवस दिन रात सोने की दुकानों में
ग़रीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती है,

हसद की आग में जलती है सारी रात वह औरत
मगर सौतन के आगे अपना जूठा डाल देती है..!!

~मुनव्वर राना

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