सवाल ये नहीं कि वो पुकार क्यों नहीं रहा
सवाल है कि उसको ऐतबार क्यों नहीं रहा ?
ये कौन इर्द गिर्द नफरतो के जाल बुन गया ?
हमारे आस पास तेरा प्यार क्यों नहीं रहा ?
किसे बताऊँ इंतज़ार ए मौत भी नहीं मुझे !
किसे बताऊँ ज़िन्दगी गुज़ार क्यों नहीं रहा ?
वो सब के सब गिले कहो कहाँ पे भूल आये हो ?
तुम्हारी आँख में वो इंतज़ार क्यों नहीं रहा ?
ख्याल एक ख्याल वो जो बस तेरा ख्याल था !
न जाने अब वो ज़ेहन पर सवाल क्यों नहीं रहा ?
चमक है माल ओ ज़र की ! जिसपे गर्द है जमी हुई !
यहाँ किसी भी सोच पर निखार क्यों नहीं रहा ?
एक उसका हाथ है जो हर बिगाड़ का इलाज है !
बिगड़ चुका हूँ मैं ! वो अब सँवार क्यों नहीं रहा ?
हमारी साँस थम चुकी है ! याद उसे दिलाये
लटक रहे है ! दार से उतार क्यों नहीं रहा ?