तेरी तरफ से कोई भी पयाम आया नहीं
दुआ तो दूर है अबतक सलाम आया नहीं,
मुझे तो तुझ पे यकीं था भरे ज़माने में
मगर ये दुःख है मेरे तू भी काम आया नहीं,
उजड़ गए है तेरे बाद हसरतो के महल
कोई भी शमअ जलाने गुलाम आया नहीं,
उसे तो सोचा मुक़म्मल हर घड़ी मैंने
वो आधा हिस्से में ही आया तमाम आया नहीं,
किस के इश्क़ का ऐसा नशा चढ़ा मुझ पर
कि अक्ल ओ ज़ेहन में कोई क़लाम आया नहीं,
तमाम उम्र सफ़र में गुज़र गई मेरी लेकिन
चले थे जिसके लिए कभी वो मुक़ाम आया नहीं..!!