ये तो इस पर है कि कब और कहाँ होने लगे
ये तमाशा वो जहाँ चाहे वहाँ होने लगे,
क़ुर्ब के सिलसिले इतने न बढ़ा ऐसा न हो
कि हर एक शय में मुझे तेरा गुमाँ होने लगे,
काश लफ्ज़ो के सहारे की ज़रूरत न पड़े
दर्द ए दिल ख़ुद ही किसी तौर बयाँ होने लगे,
वो जो एक उम्र गुरेजाँ रहे हमसे यारो !
अब वही लोग क़रीब ए रग ए जाँ होने लगे,
ये ग़रीबी भी बड़ा काम हमारे आई
इसके आते ही कई चेहरें अयाँ होने लगे,
कल हमें जान ए तमाशा थे तमाशागर भी
क्या अज़ीब आज तमाशा सर ए जान होने लगे,
देख ! तू ये अपना अंदाज़ ए बयाँ बदल
इससे पहले कि वो शेरो से अ याँ होने लगे..!!