तुझे ना आयेगी मुफ़लिस की मुश्किलात समझ
मैं छोटे लोगो के घर का बड़ा हूँ, बात समझ,
मेरे अलावा है छः लोग मुनहसर मुझ पर
मेरी हर एक मुसीबत को ज़र्ब सात समझ,
फ़लक से कट के ज़मीन पर गिरी पतंग देख
तो हिज़्र काटने वालो की नफ्सियात समझ,
शुरू दिन से उधेड़ा गया है मेरा वज़ूद
जो देख रहा है इसे मेरी बाकियात समझ,
क़िताब ए इश्क़ में हर आह ! एक आयत है
और आँसूओ को हरुफ़ ए मक्तआ’त समझ,
करे ये काम तो कुनबे का दिन गुज़रता है
हमारे हाथो को घर की घड़ी के हाथ समझ,
दिल ओ दिमाग ज़रूरी है ज़िन्दगी के लिए
ये हाथ पाँव तू इज़ाफ़ी सहूलियात समझ..!!
उम्दा