चाहा है तुझे मैंने तेरी ज़ात से हट कर…

चाहा है तुझे मैंने तेरी ज़ात से हट कर
इस बार खड़ा हूँ मैं रवायात से हट कर,

तुम इश्क़ के किस्से मुझे आ कर न सुनाओ
दुनियाँ में नहीं कुछ भी मफ़ादात से हट कर,

जिस शख्स को पूजा था उसे माँग रहा हूँ
मैं माँग रहा हूँ उसे औकात से हट कर,

हाँ सोच रहा हूँ मैं तुझे अपना बना लूँ
हाँ सोच रहा हूँ मैं ख्यालात से हट कर,

गम ये है कि मैं अपने क़बीले का बड़ा हूँ
चलना ही पड़ेगा मुझे सुकरात से हट कर,

वाएज़ ने कहा अक्ल कहाँ पर है तुम्हारी
मैंने ये कहाँ ख़ुल्द के बागात से हट कर,

रहना है मुझे उसकी तमन्ना से बहुत दूर
रहना है मुझे हिज़्र के हालात से हट कर..!!

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