तर्क ए ग़म गवारा है और न ग़म का यारा है
तर्क ए ग़म गवारा है और न ग़म का यारा है अब तो दिल की …
तर्क ए ग़म गवारा है और न ग़म का यारा है अब तो दिल की …
हम वक़्त ए मौत को तो हरगिज़ टाल न पाएँगे हम ख़ाली हाथ आए है …
बात करते है यहाँ क़तरे भी समन्दर की तरह अब लोग ईमान बदलते है कैलेंडर …
दस्तरस में न हो हालात तो फिर क्या कीजिए वक़्त दिखलाए करिश्मात तो फिर क्या …
कुछ चलेगा ज़नाब, कुछ भी नहीं चाय, कॉफ़ी, शराब, कुछ भी नहीं, चुप रहे तो …
हर रिश्ता यहाँ बस चार दिन की कहानी है अंज़ाम ए वफ़ा आँखों से बहता …
जी चाहे तो शीशा बन जा, जी चाहे पैमाना बन जा शीशा पैमाना क्या बनना …
घने बादलो से जो कभी थोड़ी धूप निकलती रहती आसरे उम्मीद के मुमकिन है ज़िन्दगी …
जाने कितने रकीब रहते हैज़िन्दगी के क़रीब रहते है, मेरी सोचो के आस्तां से परेमेरे …