लोग कैसे है यहाँ के ? ये नगर कैसा है ?
लोग कैसे है यहाँ के ? ये नगर कैसा है ? उनकी जादू भरी बातों …
लोग कैसे है यहाँ के ? ये नगर कैसा है ? उनकी जादू भरी बातों …
तिनका तिनका काँटे तोड़े सारी रात कटाई की क्यूँ इतनी लम्बी होती है चाँदनी रात …
ज़हर के घूँट भी हँस हँस के पीये जाते है हम बहरहाल सलीक़े से जीये …
किस्से मेरी उल्फ़त के जो मर्क़ूम है सारे आ देख तेरे नाम से मौसम है …
इंशा जी उठा अब कूच करो, इस शहर में जी का लगाना क्या वहशी को …
ये ज़र्द पत्तों की बारिश मेरा ज़वाल नहीं मेरे बदन पे किसी दूसरे की शाल …
थी जिसकी जुस्तज़ू वो हकीक़त नहीं मिली इन बस्तियों में हमको रफ़ाक़त नहीं मिली, अबतक …
किसी की आह सुनते ही जो फ़ौरन काँप जाते है वही इंसानियत के दर्द में …