किस्से मेरी उल्फ़त के जो मर्क़ूम है सारे
आ देख तेरे नाम से मौसम है सारे,
बस इस लिए हर काम अधूरा ही पड़ा है
ख़ादिम भी मेरी कौम के मखदूम है सारे,
अब कौन मेरे यादों की जंज़ीर को खोले
हाकिम मेरी बस्ती के महकूम है सारे,
शायद ये ज़र्फ है जो ख़ामोश हूँ अब तक
वरना तो तेरे ऐब भी मालूम है सारे,
हर ज़ुर्म मेरी ज़ात से मंसूब है
क्या मेरे सिवा शहर में मासूम है सारे ??