हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे
हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे कि हमको दस्त ए ज़माना से …
हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे कि हमको दस्त ए ज़माना से …
मुस्तक़िल महरूमियों पर भी तो दिल माना नहीं लाख समझाया कि इस महफ़िल में अब …
क्या ऐसे कम सुख़न से कोई गुफ़्तुगू करे जो मुस्तक़िल सुकूत से दिल को लहू …
अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रखा है मगर चराग़ ने लौ को सँभाल रखा है, …
जुज़ तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त …
गिले फ़ुज़ूल थे अहद ए वफ़ा के होते हुए सो चुप रहा सितम ए नारवां …
थक गया है मुसलसल सफ़र उदासी का और अब भी है मेरे शाने पे सर …
दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें दिल भी माना नहीं कि तुझ से कहें, …
अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिए बोल ऐ हवा ए शहर किधर …
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं ‘फ़राज़’ अब ज़रा लहजा बदल के देखते …