है शक्ल तेरी गुलाब जैसी, नज़र है तेरी शराब जैसी..

है शक्ल तेरी गुलाब जैसी
नज़र है तेरी शराब जैसी,

हवा सहर की है इन दिनों में
बदलते मौसम के ख़्वाब जैसी,

सदा है इक दूरियों में ओझल
मिरी सदा के जवाब जैसी,

वो दिन था दोज़ख़ की आग जैसा
वो रात गहरे अज़ाब जैसी,

ये शहर लगता है दश्त जैसा
चमक है उस की सराब जैसी,

‘मुनीर’ तेरी ग़ज़ल अजब है
किसी सफ़र की किताब जैसी..!!

~मुनीर नियाज़ी

Leave a Reply

Eid Special Dresses for women

Subscribe