सर ए मिंबर वो ख़्वाबों के महल तामीर करते हैं
इलाज ए ग़म नहीं करते फ़क़त तक़रीर करते हैं,
बहर आलम ख़ुदा का शुक्र कीजे उन का कहना है
ख़ता करते हैं हम जो शिकवा ए तक़दीर करते हैं,
हमारी शायरी में दिल धड़कता है ज़माने का
वो नालाँ हैं हमारी लोग क्यों तौक़ीर करते हैं ?
उन्हें ख़ुशनूदी ए शाहाँ का दाइम पास रहता है
हम अपने शे’र से लोगों के दिल तस्ख़ीर करते हैं,
हमारे ज़ह्न पर छाए नहीं हैं हिर्स के साए
जो हम महसूस करते हैं वही तहरीर करते हैं,
बने फिरते हैं कुछ ऐसे भी शायर इस ज़माने में
सना ग़ालिब की करते हैं न ज़िक्र ए मीर करते हैं,
हसीन आँखों मधुर गीतों के सुंदर देस को खो कर
मैं हैराँ हूँ वो ज़िक्र ए वादी ए कश्मीर करते हैं,
हमारे दर्द का जालिब मुदावा हो नहीं सकता
कि हर क़ातिल को चारागर से हम ताबीर करते हैं..!!
~हबीब जालिब
ग़ालिब ओ यगाना से लोग भी थे जब तन्हा
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