नज़र नज़र में लिए तेरा प्यार फिरते हैं

नज़र नज़र में लिए तेरा प्यार फिरते हैं
मिसाल ए मौज ए नसीम ए बहार फिरते हैं,

तेरे दयार से ज़र्रों ने रौशनी पाई
तेरे दयार में हम सोगवार फिरते हैं,

ये हादिसा भी अजब है कि तेरे दीवाने
लगाए दिल से ग़म ए रोज़गार फिरते हैं,

लिए हुए हैं दो आलम का दर्द सीने में
तेरी गली में जो दीवाना वार फिरते हैं,

बहार आ के चली भी गई मगर जालिब
अभी निगाह में वो लाला ज़ार फिरते हैं..!!

~हबीब जालिब

बहुत रौशन है शाम ए ग़म हमारी

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