नशा नशे के लिए है अज़ाब में शामिल
किसी की याद को कीजे शराब में शामिल,
हर एक तलाश यहाँ फ़ासलों से रौशन है
हक़ीक़तें कहाँ होती हैं ख़्वाब में शामिल ?
वो तुम नहीं हो तो फिर कौन था वो तुम जैसा
किसी का ज़िक्र तो था हर किताब में शामिल,
हमें भी शौक़ है अपनी तरफ़ से जीने का
हमारा नाम भी कीजे इताब में शामिल,
अकेले कमरे में गुलदान बोलते कब हैं
तुम्हारे होंठ हैं शायद गुलाब में शामिल,
ज़मीन रोज़ कहाँ मोजिज़ा दिखाती है
मेरी निगाह भी होगी नक़ाब में शामिल,
उसी का नाम है नग़्मा उसी का नाम ग़ज़ल
वो एक सुकून जो है इज़्तिराब में शामिल..!!
~निदा फ़ाज़ली