न शब ओ रोज़ ही बदले है न हाल अच्छा है
किस ब्राह्मण ने कहा था कि ये साल अच्छा है ?
हम कि दोनों के गिरफ्तार रहे जानते है
दाम ए दुनियाँ से कही ज़ुल्फ़ का जाल अच्छा है,
मैंने पूछा था कि आख़िर ये तगाफुल कब तक ?
मुस्कुराते हुए वो बोले कि सवाल अच्छा है,
दिल न माने भी तो ऐसा है कि गाहे ब गाहे
यार ए बे फैज़ से हल्क़ा सा मलाल अच्छा है,
लज्जते क़ुर्ब ओ जुदाई की है अपनी अपनी
मुस्तक़िल हिज़्र ही अच्छा न विसाल अच्छा है,
दोस्ती अपनी जगह पर ये हकीक़त है फ़राज़
तेरी गज़लों से कहीं तेरा गज़ाल अच्छा है..!!
~अहमद फ़राज़