किसी और ग़म में इतनी ख़लिश ए निहाँ नहीं है

किसी और ग़म में इतनी ख़लिश ए निहाँ नहीं है
ग़म ए दिल मेरे रफ़ीक़ो ग़म ए राएगाँ नहीं है,

कोई हम नफ़स नहीं है कोई राज़ दाँ नहीं है
फ़क़त एक दिल था अब तक सो वो मेहरबाँ नहीं है,

मेरी रूह की हक़ीक़त मेरे आँसुओं से पूछो
मेरा मज्लिसी तबस्सुम मेरा तर्जुमाँ नहीं है,

किसी ज़ुल्फ़ को सदा दो किसी आँख को पुकारो
बड़ी धूप पड़ रही है कोई साएबाँ नहीं है,

इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ
मेरे घर के रास्ते में कोई कहकशाँ नहीं है..!!

~मुस्तफ़ा ज़ैदी

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