रोज़ जब रात को बारह का गजर होता है…

रोज़ जब रात को बारह का गजर होता है
यातनाओं के अँधेरे में सफ़र होता है,

कोई रहने की जगह है मेरे सपनो के लिए
वो घरौंदा ही सही, मिट्टी का भी घर होता है,

सर से सीने में कभी पेट से पाँव में कभी
एक जगह हो तो कहें दर्द इधर होता है,

ऐसा लगता है कि उड़कर भी कहाँ पहुँचेंगे
हाथ में जब कोई टूटा हुआ पर होता है,

सैर के वास्ते सड़को पे निकल आते थे
अब तो आकाश से पथराव का डर होता है..!!

~दुष्यंत कुमार

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