दिल है सहरा से कुछ उदास बहुत
घर को वीराँ करूँ तो घास बहुत,
रोब पड़ जाए इस पे लहजे का
मुद्दआ कम हो इल्तिमास बहुत,
मेरी तन्हाइयों की दुनिया में
लोग रहते हैं आस पास बहुत,
है अजब हाल ग़म के सूरज का
रौशनी कम है इनइकास बहुत,
मुतमइन दिल हो क्या हक़ीक़त से
है मेरी सोच में क़यास बहुत,
लोग मरते हैं एक ख़ुशी के लिए
हम मसर्रत में हैं उदास बहुत,
दूर उफ़्तादा ए चमन के लिए
एक ही फूल की है बास बहुत,
ख़द्द ओ ख़ाल उस के और ये चेहरे
ऐसे देखे हैं इक़्तिबास बहुत,
जिस से मंसूब तल्ख़ियाँ हैं नज़र
उस के लहजे में है मिठास बहुत..!!
~जमील नज़र