अब तो शहरों से ख़बर आती है दीवानों की
कोई पहचान ही बाक़ी नहीं वीरानो की,
दिल में वो ज़ख्म खिले है कि चमन क्या शय है
घर में बारात सी उतरी हुई गुल दानो की,
उनको क्या फ़िकर कि मैं पार लगा या डूबा
बहस करते रहे साहिल पे जो तूफानों की,
तेरी रहमत तो मुसल्लम है मगर ये तो बता
कौन बिजली को ख़बर देता है काशानो की,
मक़बरे बनते है जिन्दो के मकानों से बुलंद
किस कदर औज़ पे तक़रिम है इंसानों की,
एक एक याद के हाथो पे चिरागों भरे तश्त
काबा दिल की फ़ज़ा है कि सनम खानों की..!!