अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है

अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है
एक नज़र मेरी तरफ़ भी तेरा जाता क्या है ?

मेरी रुस्वाई में वो भी हैं बराबर के शरीक
मेरे क़िस्से मेरे यारों को सुनाता क्या है ?

पास रह कर भी न पहचान सका तू मुझको
दूर से देख के अब हाथ हिलाता क्या है ?

ज़ेहन के पर्दों पे मंज़िल के हयूले न बना
ग़ौर से देखता जा राह में आता क्या है ?

ज़ख़्म ए दिल जुर्म नहीं तोड़ भी दे मोहर ए सुकूत
जो तुझे जानते हैं उन से छुपाता क्या है ?

सफ़र ए शौक़ में क्यूँ काँपते हैं पाँव तेरे
आँख रखता है तो फिर आँख चुराता क्या है ?

उम्र भर अपने गरेबाँ से उलझने वाले
तू मुझे मेरे ही साए से डराता क्या है ?

चाँदनी देख के चेहरे को छुपाने वाले
धूप में बैठ के अब बाल सुखाता क्या है ?

मर गए प्यास के मारे तो उठा अब्र ए करम
बुझ गई बज़्म तो अब शम्अ जलाता क्या है ?

मैं तेरा कुछ भी नहीं हूँ मगर इतना तो बता
देख कर मुझको तेरे ज़ेहन में आता क्या है ?

तेरा एहसास ज़रा सा तेरी हस्ती पायाब
तो समुंदर की तरह शोर मचाता क्या है,

तुझमें कसबल है तो दुनिया को बहा कर ले जा
चाय की प्याली में तूफ़ान उठाता क्या है,

तेरी आवाज़ का जादू न चलेगा उन पर
जागने वालों को शहज़ाद जगाता क्या है…!!

~शहज़ाद अहमद

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